
भारतीय विज्ञापन जगत में जब भी मौलिकता, रचनात्मकता और भारतीय संवेदना की बात होगी तो सबसे पहले जिस शख्स का नाम सामने आयेगा वे हैं पीयूष पाण्डे। वे केवल विज्ञापन विशेषज्ञ ही नहीं बल्कि ऐसे कथाकार थे जिन्होंने भारत की नब्ज को पहचानकर उसे विज्ञापन की भाषा में ढाला। पिछले दिनों 24 अक्टूबर 2025 को सत्तर वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनके निधन के साथ ही विज्ञापन जगत पर एक ऐसा व्यक्ति हमारे बीच से चला गया जिसने विज्ञापनों में भारतीय संस्कृति, पारिवारिक मूल्य और भावनाओं को समाहित किया। उनकी सोच ने यह साबित किया कि विज्ञापन केवल उत्पाद बेचने का माध्यम नहीं बल्कि समाज, संस्कृति और भावनाओं को जोड़ने का साधन है। पीयूष पाण्डे भारतीय विज्ञापन जगत का ऐसा चेहरा थे जो मानते थे कि ब्रांड केवल उत्पाद से नहीं बल्कि लोगों की भावनाओं, संस्कृति, परम्पराओं और कहानियों से बनते हैं। उनकी सोच, सादगी और भारतीयता ने विज्ञापनों को दिल की भाषा बना दिया।
05 सितम्बर 1955 को जयपुर में जन्मे पीयूष पाण्डे ऐसे परिवार से थे जहाँ कला, साहित्य और संस्कृति को विशेष दर्जा दिया जाता था। उनकी बहन इला अरुण प्रख्यात गायिका हैं एवं भाई प्रसून पाण्डे विज्ञापन जगत से जुड़े हैं। स्कूली शिक्षा जयपुर से पूरी करने के बाद वे दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज पहुंचे जहाँ से उन्होंने इतिहास में स्नातक किया। कॉलेज के दिनों में वे क्रिकेट टीम के कप्तान होने के साथ राजस्थान की रणजी टीम के सदस्य भी थे। प्रख्यात क्रिकेटर अरुण लाल एवं कीर्ति आजाद क्रिकेट के दिनों के उनके साथी रहे हैं।
पीयूष पाण्डेय 1982 में ओगिल्वी एंड माथर (ओ एंड एम इंडिया) से जुड़े और चार दशकों तक ओगिल्वी के साथ रहे। अस्सी के शुरुआती दशक में भारतीय विज्ञापनों में पश्चिमी शैली और अंग्रेजी की छाप दिखाई देती थी। उन दिनों ऐलिक पद्मसी और प्रहलाद कक्कड जैसे जाने माने विज्ञापन विशेषज्ञों का प्रभाव था। उस दौर में पीयूष पाण्डे ने विज्ञापन को भारतीयता से जोड़ा। जहाँ पश्चिमी विज्ञापन चमक-दमक, ग्लैमर और तकनीक पर आधारित थे वहीं पीयूष पाण्डे ने भारतीय संस्कृति, लोकभाषा, पारिवारिक मूल्यों और भावनाओं को अपने विज्ञापनों का केन्द्र बनाया। उनका मानना था कि भारत भावनाओं का देश है जहाँ लोग तर्क से नहीं दिल से खरीदते हैं। पीयूष पाण्डे ने ओगिल्वी को वैश्विक स्तर पर ले जाने में अग्रणी भूमिका निभाई। वे ओगिल्वी से कॉपीराइटर के रूप में जुड़े और चार दशकों के अपने सफर में वे ओ एंड एम के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन और बाद में ग्लोबल चीफ क्रिएटिव आफिसर बने। 2023 से वे इन पदों को छोड़कर सलाहकार की भूमिका में काम करने लगे।
वर्षाें पहले दूरदर्शन के शुरुआती दिनों में लोक संचार परिषद के लिए लिखे गीत ”मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा“ ने उन्हें विशिष्ट पहचान दी और बड़े विज्ञापन निर्माताओं की कतार में ला खड़ा किया। उसके बाद उनके बनाए विज्ञापनों ने पूरे देश में धूम मचा दी। फेवीकोल के लिए बनाया गया उनका विज्ञापन, भारतीय विज्ञापन इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है। इस विज्ञापन की पंचलाइन- ”फेवीकोल का मजबूत जोड़ है टूटेगा नहीं“ और ‘दम लगा के हइशा’ आज भी लोगों के दिलांे में बसती है। गांव की पृष्ठभूमि, लोकसंस्कृति और हास्य के बेजोड़ मिश्रण ने इस विज्ञापन को अमर बना दिया। केडबरी डेयरीमिल्क के लिए बनाया गया उनका विज्ञापन ‘कुछ खास है हम सभी में’ ने केडबरी चॉकलेट को बच्चों से निकालकर हर उम्र की मिठास का जरिया बना दिया। एशियन पेंट्स के लिए बनाया गया उनका विज्ञापन ‘हर घर कुछ कहता है’ ने पेंट्स और घरों को भावनाआंे से जोड़ा। रंगों को सिर्फ दीवारांे तक सीमित न रखकर उसे भावनाओं की भाषा बना दिया। वोडाफोन-हच का विज्ञापन ‘वेयर एवर यू गो अवर नेटवर्क फॉलोज (पग डॉग कैम्पेन)’ आज भी लोगों के जेहन में जगह बनाए हुए है। वोडाफोन जूजू के विज्ञापन में रचनात्मकता के नए आयाम जोड़े और साबित किया कि तकनीक एवं एनीमेशन में भी भारतीय भावनाओं का मिश्रण किया जा सकता है। टाटा का ‘जागो रे’ विज्ञापन चाय पीते हुए जागने को सामाजिक जागरूकता और नागरिक चेतना को सुंदर ढंग से जोड़ता है। पल्स पोलियो अभियान के लिए बनाए गए उनके विज्ञापन ‘दो बूंद जिंदगी की’ केवल एक सरकारी प्रचार अभियान नहीं रहा बल्कि एक सामाजिक आन्दोलन बन गया।
फेविक्विक के लिए बनाया गया उनका विज्ञापन ‘तोड़ो नहीं जोड़ो’, काइनेटिक लूना के लिए ‘चल मेरी लूना’, कोक के लिए ‘ठंडा मतलब कोकाकोला’, एसबीआई लाइफ के लिए बनाया गया विज्ञापन ‘जिंदगी हंस के बिताएंगे’ एवं ‘अपने लिए, अपनों के लिए’, तनिष्क का विज्ञापन ‘जो खूबसूरत हैं, वे खुद जानते हैं’, आईसीआईसीआई पर उनका विज्ञापन ‘हम हैं न, ख्याल आपका’, डाबर च्यवनप्राश के लिए ‘अंदर से स्ट्राँग’, भारतीय रेल के लिए ‘देश की धड़कन’, लाइफबॉय सोप के लिए ‘तंदुरूस्ती की रक्षा करता है लाइफबॉय’ और एयरटेल के लिए उनका विज्ञापन ‘हर एक फ्रेंड जरूरी होता है’ आज भी लोगों को गुदगुदाते हैं। 2014 में लिखा उनका विज्ञापन ‘अबकी बार मोदी सरकार’ अब तक का सबसे सफल राजनीतिक विज्ञापन माना जाता है।
पीयूष पाण्डे मानते थे कि कहानी वह होती है जो दिल से निकले और तभी वह कानों में नहीं दिमाग में बसती है। वे कहते थे जिन्दगी और विज्ञापन दोनों का मकसद जोड़ना है जीतना नहीं। अपनी टीम को प्रेरित करते हुए वे बताते थे कि महान विज्ञापन सड़क, घर और मोहल्ले से पैदा होते हैं न कि एयर कंडीशन्ड बोर्ड रूम से। पीयूष पाण्डे कहते थे कि विज्ञापन का मूल उद्देश्य लोगों से संवाद है और एक अच्छा विज्ञापन वह होता है जो संदेश को सरल भाषा में कहते हुए सीधे दिल तक पहुँचे और दर्शक को सोचने और मुस्कुराने पर मजबूर कर दे। वे विज्ञापन को कहानी कहने की कला मानते थे। उनके अनुसार हर ब्रांड की एक आत्मा होती है और विज्ञापन उस आत्मा को आवाज देता है।
विज्ञापनों के बाद पीयूष का दूसरा प्यार क्रिकेट था जब उन्होंने क्रिकेट खेलना छोड़ दिया तो उनकी बातचीत में क्रिकेट नजर आने लगा था। वे हर बात को क्रिकेट के मुहावरे में कहते थे। मीटिंग के दौरान अपनी टीम से अक्सर कहते थे ‘फ्रंट फुट पर खेलो’। फ्रंट फुट पर खेलना हमेशा ओगिल्वी की रगो में रहा। मीटिंग को वो मैच मानते थे। यदि क्लाइंट को आइडिया अच्छा लगे तो वो कहते थे ‘हम जीत गये’। किसी के काम की तारीफ करना हो तो वो कहते थे ‘वेल प्लेड’। उनका मानना था ‘टीम इज मोर इम्पोर्टेंट देन दी कैप्टन’। उन्होंने विज्ञापन की दुनिया को बहुत से ‘प्लेइंग कैप्टन्स’ दिए। यही वजह है कि आज विज्ञापन जगत में अस्सी प्रतिशत से ज्यादा क्रिएटिव लोग उनके मार्गदर्शन से गुजरे हैं। प्रख्यात विज्ञापनकर्मी आर.बाल्की एवं शुजीत सरकार भी उनकी टीम का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने शुजीत सरकार की फिल्म मद्रास कैफे में अभिनय भी किया।
कला और विज्ञापन के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें 2016 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। कॉन्स फेस्टीवल ने उन्हें ‘लॉयन ऑफ सेंट मार्क’ सम्मान से सम्मानित किया। यह इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक देसज आदमी पूरी दुनिया का दिल जीत सकता है। 2012 में क्लिओ लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड पाने वाले वे पहले एशियाई विज्ञापन विशेषज्ञ थे। द एडवरर्टाइजिंग क्लब, मुम्बई ने उन्हें विज्ञापन के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया। कई बार वे कॉन्स लॉयन्स ज्यूरी के मेम्बर के रूप में आमंत्रित किए गए। इकोनोमिक टाइम्स ने उन्हें ‘मोस्ट इन्फ्लूएंशल पर्सन इन इंडियन एडवरटाइजिंग’ घोषित किया है। उनके नेतृत्व में ओगिल्वी की टीम ने कॉन्स लॉयन्स, क्लिओ अवार्ड और वन शो जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों में भारत का नाम रोशन किया।
पीयूष पाण्डे ने 2015 में अपनी आत्मकथा ‘पाण्डेमोनियमः पीयूष पाण्डे ऑन एडवरटायजिंग’ लिखी जिसमें उन्होंने अपने जीवन और जीवन के अनुभवों और विज्ञापन जगत के बदलावों को बहुत सहज शैली में प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक केवल विज्ञापन पेशेवरों के लिए ही नहीं है बल्कि प्रत्येक रचनात्मक व्यक्ति के लिए बहुत कुछ सीखने और समझने का स्रोत है। इस पुस्तक की प्रस्तावना अमिताभ बच्चन द्वारा लिखी गई है। वे भारतीय विज्ञापन जगत में ‘बिग डैडी’ कहलाते थे। उन्होंने संवेदनशीलता, सच्चाई और अटूट विश्वास के जरिए साबित किया कि रचनात्मकता बदलाव ला सकती है।
विज्ञापन जगत में चार दशकों से अधिक के अपने योगदान के कारण उन्हें ‘विज्ञापन जगत का महानायक’ एवं ‘एड गुरु’ के सम्बोधनों से नवाजा गया है। उनकी विशिष्ट मूछें, गंूजती हंसी और देशी भाषा में जादू बुनने की कला ने उन्हें विज्ञापन जगत का बेताज बादशाह बनाया। उनके प्रभाव ने भारतीय विज्ञापन कम्पनियों को वैश्विक मंचों पर अलग पहचान दी। उन्होंने हिंदी और भारतीय भाषाओं को विज्ञापन की मुख्य धारा में लाया और साबित किया कि रचनात्मकता केवल अंग्रेजी तक सीमित नहीं है। उन्होंने विज्ञापन को व्यापार का नहीं बल्कि संवाद और संस्कृति का माध्यम बनाया। वे मानते थे कि अच्छा विज्ञापन वह होता है जो बेचता नहीं, बल्कि जोड़ता है।
वे केवल एक रचनाकार नहीं थे बल्कि विज्ञापन के कवि थे जिन्होंने भारत की आत्मा को अपने शब्दों और दृश्यों में उतारा। तुलसीदास लिख चुके हैं ‘कीरति भनिति भूमि भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई। अर्थात कीर्ति, कविता और सम्पत्ति वही उत्तम है जो गंगा की तरह सबका हित करने वाली हो। विज्ञापन जगत के लिए किया गया उनका काम, विज्ञापन का जीवंत पाठ और सर्वकालीन श्रेष्ठ काम हैं। विज्ञापन को रचना बना देने की कला के ऐसे अप्रतिम साधक को हम सबका प्रणाम।

डॉ.पवित्र श्रीवास्तव, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में जनसंपर्क और विज्ञापन विभाग के अध्यक्ष हैं। देश के वरिष्ठ मीडिया अध्यापकों में शामिल हैं। फ़िल्म में विशेष रुचि। अनेक विश्वविद्यालयों के मीडिया विभागों में अध्ययन मंडल के सदस्य हैं।