हिन्दी पत्रकारिता की आगामी दिशा

हिन्दी पत्रकारिता की आगामी दिशा: तकनीक, संवेदना और उत्तरदायित्व की त्रयी

डॉ लाल बहादुर ओझा

हिन्दी पत्रकारिता ने अपने 200 वर्षों के इतिहास में अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रकाशन (1826) से लेकर आज के डिजिटल युग तक, इसने समाज को जागरूक करने, जनमत को आकार देने और लोकतंत्र को मजबूत करने में निर्णायक भूमिका निभाई है। परंतु वर्तमान समय में, जब पत्रकारिता पर व्यवसायिकता और राजनीतिक प्रभाव का दबाव बढ़ रहा है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हिन्दी पत्रकारिता अपनी आगामी दिशा पर आत्ममंथन करे। यह लेख हिन्दी पत्रकारिता के भविष्य की उन दिशाओं की पहचान करता है, जहाँ तकनीक, जनसरोकार और उत्तरदायित्व के त्रिकोणीय दायरे में इसकी भूमिका और भी अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है।

तकनीकी परिवर्तन और डिजिटल युग की पत्रकारिता

इंटरनेट और स्मार्टफोन की क्रांति ने हिन्दी पत्रकारिता के लिए अवसरों के नए द्वार खोले हैं। आज ग्रामीण भारत से लेकर महानगरों तक लोग विविध समाचार ऐप, वेबसाइट, यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से समाचार प्राप्त कर रहे हैं और समाचार दे भी रहे हैं। विविधतापूर्ण कंटेंट तैयार कर रहे है। वे अब केवल उपभोक्ता नहीं रह गये हैं बल्कि योगदानकर्ता भी बन गये हैं। सूचना संसार में लेन-देन में बराबरी की इस स्थिति को ‘डिजिटल डेमोक्रेसी’ कहा जा रहा है। यह परिघटना हिन्दी पत्रकारिता में भी सशक्त होती जा रही है।

इसकी अगली कड़ी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा आधारित रिपोर्टिंग हिन्दी पत्रकारिता में अपेक्षाकृत नया क्षेत्र है। मीडिया संस्थानों में इसको अलग-अलग रूपों में आजमाया जा रहा है। इसमें संभावनाएँ भी बहुत हैं। सवाल यह उठता है कि इन नयी तकनीक का उपयोग किस रूप में किया जा रहा है या किया जायेगा?  हिन्दी पत्रकारिता में इन तकनीकों का उपयोग करके विकास पत्रकारिता, खोजपरक और साक्ष्य आधारित रिपोर्टिंग के दायरे को बढ़ाया जा सकता है। ‘गांव कनेक्शन’ जैसे प्लेटफॉर्म ने ग्रामीण भारत की आवाज़ को डिजिटल स्पेस में मुखर किया है।

मूल्य आधारित पत्रकारिता की पुनर्प्रतिष्ठा

आज पत्रकारिता का एक बड़ा हिस्सा सनसनीखेज शीर्षकों, ट्रेंडिंग विवादों और राजनीतिक ध्रुवीकरण पर केंद्रित हो गया है। हालिया भारत-पाक तनाव और अहमदाबाद में हुई विमान दुर्घटना के दौरान हुई रिपोर्टिंग में इसका विभत्स रूप देखने को मिला। ठोस साक्ष्य, प्रमाणिक स्रोत की बजाय सूत्रों के हवाले से  अधिकांश गप्पबाजी की जाती रही। पत्रकारीय परंपरा में इसको पीत पत्रकारिता के नाम से संबोधित किया जाता है। इसका समाधान यह है कि पत्रकारिता अपने बुनियादी मूल्यों की ओर लौटे —तथ्यपरकता, निष्पक्षता, तटस्थता, स्रोत आधारित और जनहित को प्राथमिकता दिया जाना जरूरी है।

वैकल्पिक मीडिया की भूमिका

मुख्यधारा बनाम वैकल्पिक पत्रकारिता की बहस पहले भी चलती रही है। ऐसा माना जाता है कि मुख्यधारा पत्रकारिता को कई तरह के दबावों में काम करना पड़ता है। ऐसे में उसकी विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इसके समांतर प्रिंट माध्यमों के वर्चस्वकाल में लघु पत्र-पत्रिकाओं का एक दौर रहा है। उसी तरह वर्तमान दौर में कई स्वतंत्र डिजिटल मीडिया संस्थान मुख्याधारा के समांतर वैकल्पिक पत्रकारिता का उदाहरण बन रहे हैं। ऐसे संस्थान या चैनल तथ्य आधारित और विवेकपूर्ण रिपोर्टिंग पर बल देते हैं जो वस्तुतः पत्रकारिता की आत्मा है। कहाँ तो पत्रकारिता में यह परंपरा रही है कि तथ्यों को पता लगाकर, साक्ष्यों के आधार पर सूचनाओं को आम किया जायेगा, परंतु अब अल्ट न्यूज, विश्वास न्यूज जैसे प्लेटफॉर्म चर्चा में हैं जो मीडिया में चल रही खबरें सही हैं या गलत इसका नीर-क्षीर करने के लिए जाने जाते हैं। मुख्यधारा मीडिया और डिजीटल स्पेस में चल रही खबरों की सच्चाई (फैक्ट चेक) के लिए गूगल और डाटा लीड्स जैसे बड़े संगठन भी काम कर रहे हैं।

भाषा और अभिव्यक्ति की नई चुनौतियाँ

वर्तमान दौर में भाषा में मिलावट को लेकर कई तरह की चुनौतियाँ हैं। विभिन्न समाजों आपसदारी से संस्कृतियों का लेन-देन स्वाभाविक है। भाषा भी इससे अछूती नहीं रह सकती। परंतु यह लेन-देन ऐसा नहीं होना चाहिए कि किसी का अस्तित्व ही खतरे में आ जाये। उसकी मौलिकता ही समाप्त हो जाये।  बहरहाल, हिन्दी पत्रकारिता को आम जनमानस से जुड़ने के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो सरल, प्रभावशाली और अर्थपूर्ण हो। अति क्लिष्ट साहित्यिक भाषा या भाषाओं का दोमेल – जैसे ‘हिंग्लिश’,  दोनों ही आम पाठकों से दूरी बनाते हैं। प्रसिद्ध आलोचक व विचारक रामविलास शर्मा ने हिन्दी जनपद की बात की थी। हिन्दी में स्थानीय भाषाओं और बोलियों का समावेश उसको और समृद्ध करेगा। बुंदेली, मगही, मैथिली, अवधी आदि क्षेत्रीय भाषाओं में समाचार प्रस्तुत करने से स्थानीयता और विविधता को बढ़ावा मिलेगा।

युवाओं की भूमिका और नवाचार

नवाचार और ऊर्जा से भरपूर युवा पीढ़ी माध्यम के नए रूप को बखूबी अपना रही है। ऐसे प्रयास हिन्दी पत्रकारिता को नए विचारों, तकनीकों और दृष्टिकोण से समृद्ध कर सकते हैं। कई युवा विशेष विषयों पर अपने स्वतंत्र पॉडकास्ट से हिन्दी पत्रकारिता को अपनी विविधता से संपन्न कर रहे हैं। नवाचार आधारित डिजिटल मीडिया स्टार्टअप्स — जैसे कि स्क्रॉल हिन्दी,  द वायर हिन्दी,  इनशॉर्ट्स, सत्य हिन्दी, लल्लन टॉप, जयपुर डायलॉग्स, स्वराज्य, दलित दस्तक अंग्रेज़ी के बाद अब हिन्दी में भी पत्रकारिता के नए मॉडल तैयार कर रहे हैं जो कॉरपोरेट दबाव से मुक्त हैं। इस नवाचार में कुछ अपवाद और विवाद भी हैं परंतु उनको अलग रखते हुए युवाओं की प्रयोगधर्मिता का स्वागत किया जाना चाहिए।

मीडिया साक्षरता और पाठक की भागीदारी

पाठक अब केवल खबरों का उपभोक्ता नहीं, बल्कि कंटेंट निर्माता, समीक्षक और जाँचकर्ता भी बन गया है। हिन्दी पत्रकारिता को ऐसे मॉडल अपनाने चाहिए जो पाठक को संवाद और भागीदारी का अवसर दे। इसका एक प्रतिफल पत्रकारिता की लक्ष्मणरेखा की अनभिज्ञता में ऐसे कंटेंट भी आ रहे हैं जो समाज में सहज ही स्वीकृत नहीं हैं। सुलभ और सहज तकनीक ने सबको अभिव्यक्ति की आज़ादी जरूर दी है परंतु फर्जी खबरों की बाढ़ में मीडिया साक्षरता का प्रचार हिन्दी समाज में अति आवश्यक हो गया है। स्कूलों, कॉलेजों और पंचायतों तक मीडिया साक्षरता अभियान पहुंचाने होंगे।

लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा

पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सत्ता से सवाल पूछना और समाज की कमजोर आवाज़ों को मुखर करना है। पत्रकारिता के ये स्वयंभू मूल्य लोकतांत्रिक व्यवस्था को सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति जवाबदेह बनाते हैं। यह आवश्यक है कि पत्रकारिता बिना किसी दबाव जनता और व्यवस्था के बीच एक पुल का काम करे।   हिन्दी पत्रकारिता को दबावमुक्त, स्वतंत्र और उत्तरदायी बनाना लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है। एक बेहतर समाज के लिए स्वतंत्र और उत्तरदायी मीडिया की हमेशा आवश्यकता बनी रहती है।

नैतिक आचार संहिता का पालन

एक उत्तरदायी और सरोकार की पत्रकारिता के लिए हिन्दी समाचार संस्थानों को प्रेस काउंसिल, एनबीए (News Broadcasters Association) आदि संस्थाओं द्वारा तय नैतिक आचार संहिता का पालन करना चाहिए। स्वतंत्र रूप से काम करने वाले पत्रकारों, सोशल मीडिया इनफ्लूएंसर को भी उपरोक्त संस्थाओं की ओर से जारी हिदायतों का ख्याल रखना चाहिए। इससे पत्रकारिता की विश्वसनीयता बढ़ेगी।

अंततः हम कह सकते हैं कि हिन्दी पत्रकारिता अब केवल ‘भाषा की पत्रकारिता’ नहीं, बल्कि ‘जनता की पत्रकारिता’ बन चुकी है। इसके सामने तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक और नैतिक चुनौतियाँ हैं, परंतु संभावनाएँ भी अपार हैं।

आगामी दिशा की ओर बढ़ते हुए हिन्दी पत्रकारिता को चाहिए कि वह तकनीक के साथ चले, संवेदना के साथ जिए, और उत्तरदायित्व के साथ बोले। यदि यह पत्रकारिता अपने मूल्यों के साथ तकनीकी नवाचार और जनसरोकार को जोड़ सके, तो यह भारतीय लोकतंत्र को और भी गहराई और स्थायित्व प्रदान कर सकती है।

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